Thursday, 4 September 2008

वेदना नारी की

कहते हो की दिल दे दो मुझे , दे दिया तो जान भी मांगो तो मिल सकती है
पर मेरी रूह को कैसे कैद कर सकते हो ?
वोह मेरी है और नही मिल सकती है !

जिस्म माँगा वो दे दिया , प्यार माँगा वो भी सब दिया
अब सांसें मांगो वो भी मिल सकती है
पर जज्बातों को काबू नही कर सकती मैं
वो मेरे है और उनपर हकुमत तुम्हे नही मिल सकती है

मेरे बचपन के दिन , मेरा घर , माँ और वो आँगन
मुझसे प्यार के बदले तुमने माँगा, मैंने छोड़ दिया
पर उस आँगन में फ़िर जाने की चाह , जैसे तुम्हे करती है
वैसे ही मुझे तंग करती है,
वो चाह मेरे है और वो तुम्हे नही मिल सकती है

सौ बुरी हो दुनिया , सौ बुरे हो अपने
मन को काबू कर चुप बैठ के आंसू पी सकती हूँ
तुम मेरे आंसू , मेरी तड़प मुझसे नही छीन सकते
वो मेरी ही और तुम्हे नही मिल सकती है

ससुराल मायका नही बन सकता , न बनेगा
पर लोग पीछे छूट जायेंगे , तुमसे कुछ नही छिन्न सकता
तुम्हे हक है , तुम पुरूष हो , जुदाई अपनों से क्या होती है
क्या समझोगे तुम , वो तकलीफ सता तुम्हे नही सकती है

हाँ मैं रोउंगी , रो रो के मन को तरपौओंगी
तुमसे उम्मीद है की कभी तो तुम पिघ्लोगे
कभी तोह तुम्हे मेरी पीड़ा दिखेगी
ना दिखी तो मैं ऐसे ही मर जाउंगी
आजमा लेना , इस चाह को प्रीती कभी छोड़ न सकती है